जीवन एक विचित्र पहेली है इसको समझना बहुत ही कठिन है इस जीवन में मानव पैदा होता है और अंत में मर जाता है उसे फिर यहां आकर जीवन में संघर्ष ना करना पड़े इस बात से अनजान के ऊपर ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है हर प्राणी को जन्म लेना ही पड़ता है, कितने ही कायाकल्प मनुष्य के जीवन में होते रहते हैं परंतु इस आवागमन के चक्र को कोई नहीं समझ पाया । मेरा जीवन भी एक ऐसी पहेली था यह पहेली-पहेली नहीं रही, कितने ही पुण्य के बाद मुझे यह जन्म मिला अति साधारण परिवार के बावजूद मेरा बचपन थोड़ा खुशहाली भरा था । बचपन में ही मां-बाप ने धर्म व नैतिकता की बातें बतायीं मेरे घर में धर्म व नैतिकता सर्वोपरि थी । नन्ही सी प्रतिभाशाली व आरंभ से ही जिम्मेदार जैसे-जैसे काया बढ़ती गई मन भी परमात्मा शक्ति को लेकर विचलित होने लगा । मन रूपी पिंजरे में कई तरह के सवाल मुझे नीरसता की ओर ले जाने लगे इसी के मद्देनजर परिवार वालों ने मेरी शादी कर दी मेरी जिंदगी की दूसरी दूसरा अध्याय, खुशी मन में घर कर गई खुशी ने मानो मेरे जीवन में नई नई बाहर ला दी हो, धीरे-धीरे खुशी ने मेरे साथ चोली-दामन का खेल खेला और फिर वही मेरे जीवन में उदासी वाली रास्ता ।
मैं बीमार रहने लगी कई कई डॉक्टर बदले, टेस्ट करवाएं लेकिन मेडिकल रिपोर्ट बिल्कुल ठीक आती थी उन में किसी भी प्रकार का कोई रोग नहीं निकलता था । मैं बिल्कुल बेजान रहती थी दिन दिन प्रतिदिन हालात को बिगड़ता देख कर मैं शास्त्रों वेदों तंत्र मंत्र साधना सिद्धि का सहारा लेने लगी, दिन-रात परमात्मा को पाने की लालसा में रोती-बिलखती अचानक एक दिन मेरी भेंट सद्गुरु सत्यानंद जी से हुई मैंने उन्हें अपना सारा वृत्तांत सुनाया उन्होंने बताया तुम ऊर्जा से पूर्ण हो तुम्हें तो ऊंची उड़ान की आवश्यकता है उन्होंने बताया कि मैं कालांतर में 1210 पूर्व नाग दंश के श्राप से पीड़ित योग माया अर्थात समस्त देवी देवताओं गंधर्वों किन्नरों असुरों की मायावी शक्ति से परिपूर्ण गंधर्व कन्या के रूप में विचरण करते हुए गोरखनाथ के अनुयाई सिद्ध अवधूत का उपहास कर बैठी तब उन्होंने क्रोधित होकर श्राप दिया कि “हे कन्या आज से तुम अपनी सारी शक्तियों को भूल जाओगे” तब मुझे उस गंधर्व कन्या को भूल का अहसास तो उनसे क्षमा याचना कर श्राप मुक्त होने का उपाय पूछा तो उन्होंने कहा कि 1200 सौ वर्षों के पश्चात तुम्हारा अति साधारण परिवार होगा तब अघोरपंथ के परंपरा द्वारा फिर तुम्हारी शक्तियों की पुनः जागृति होगी ।
तत्पश्चात सद्गुरु जी के वचन सुनकर में लामा फेरा मुद्राओं के के द्वारा साधना सिद्धियों की तरफ बढ़ती चली गई जीवन की जिज्ञासा ने मुझे कहां से कहां लाकर खड़ा कर दिया आज मैं परमात्मा गुरु कृपा एवं कुल देवता की कृपा से आध्यात्मिक के मार्ग पर चलकर लोगों को दीक्षा देकर उन्हें दिशा दिखाकर उनकी दशा सुधारते हुए उन्हें आध्यात्मिकता के रास्ते पर ले जा रही हूं ऐसे कई साधक हैं जो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर बहुत आगे बढ़ रहे हैं मैं तरुण से गुरु मां तपेश्वरी रूप जी के रूप में लोगों को आध्यात्मिक रूप से जागृत करने का और प्रयास करती रहूंगी ।
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